भारत में जाति आधारित जनगणना के उचित परीक्षण कीजिए।
जाति आधारित जनगणना का अर्थ:-
किसी राज्य या किसी विशेष क्षेत्र में रहने वाले जनसंख्या के सामाजिक ,आर्थिक एवं शैक्षिक स्थिति का वितरण प्राप्त करना जाति आधारित जनगणना कहलाती है
जाति आधारित जनगणना का उद्देश्य:-
(i) ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों गरीबी ग्रेखा से नीचे परिवार की जानकारी प्राप्त करना
(ii) विभिन्न जातियों का सामाजिक आर्थिक एवं शैक्षिक स्थिति के जानकारी प्राप्त करना
(iii) इन सूचनाओं के आधार पर सरकार द्वारा विकास कार्यक्रमों का निर्माण करना एवं संपादन करना
जाति आधारित जनगणना का लाभ :-
(i) जाति प्रधान भारतीय समाज में विभिन्न जातियों की सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक स्थितियों के जानकारी संभव
(ii) विभिन्न जाति के सही संख्या एवं स्थिति के आकलन से उनके लिए सामाजिक समुचित विकास के कार्यक्रम का निर्माण करना एवं कार्य संभव
(iii) गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले जनसंख्या मात्रा एवं प्रकृति के पहचान करके उनके लिए समुचित कार्य करना संभव
(iv) आरक्षण व्यवस्था का आर्किककीकारण करना संभव
(v)यह सब सामाजिक न्याय से युक्त विकसित भारत का निर्माण करना संभव
जाति आधारित जनगणना हानि :-
(i) विभिन्न जातियों के मध्य विकृति स्थिति फलता सामुदायिक स्वाहारकता कमजोर
(ii) सरकारी सुविधा का लाभ उठाने के लिए जाति बदलकर दर्ज करवाने की संभावना फलता सामान्य एवं सामाजिक न्याय का लक्षण वंचित
(iii) जाति आधारित राजनीति का बढ़ावा और लोकतंत्र कमजोर
(iv) आरक्षण के मुद्दे पर विभिन्न जातियों के बीच तनाव की संभावना
(v)आधुनिकीकरण की प्रक्रिया बाधित
मूल्यांकन एवं निष्कर्ष:-
निश्चित रूप से जाति पर जाति आधारित जनगणना के कुछ नकारात्मक प्रभाव दिखाई देते हैं…….
परंतु भारत जैसे जाती प्रधान देश में जहां जाति व्यवस्था कुछ परंपरागत स्वरूप तथा कुछ नवीनतम स्वरूप के साथ अपनी नियंत्रकता को बनाए रखे हुए हैं और आरक्षण हेतु सामाजिक शैक्षिक रूप मैं आधार के रूप में क्रियाशील है..आधुनिक सामाजिक के निर्माण के तर्क पर जाति आधारित जनगणना के अस्वीकार नहीं किया जा सकता है
आता निष्कर्ष है कि समकालीन भारत में जाति आधारित जनगणना कुछ एक हानियों के बावजूद आवश्यक एवं प्रासंगिक है क्योंकि इससे न केवल विकास कार्यक्रमों को वंचित लोगों तक पहुंचने में मदद मिलेगी परंतु आधार आरक्षण व्यवस्था तरक्कीकरण तभी संभव पाएगा l